9.26.2014

Everyday An Independence Day


While I was designing the e-invite for Independence Day celebration at Prayas Vidalaya, I felt it
would be like many-many Independence Day functions that I have attended during school days. And
when the day arrived, I witnessed it to be true to an extent only. The decoration could say for itself
that it was some national day celebration with tricolor display almost everywhere. Post flag hoisting, the cultural event started. As we feel it auspicious, it started with Saraswati Vandana,followed by dance performances by students of different classes. The dance performances included Rajasthani dance, bollywood numbers (not very surprisingly Honey Singh’s number), classical among others.




While this all was so usual, the whole environment looked and felt so unusual. The event took place inside the community, not in any ground or hall but on the passage. The passage was covered with tents and a raised platform was made to give it a look of the stage. Dari was spread all along to facilitate sitting arrangement. The most expected audience- students, teachers & volunteers were all seated at their designated places. However they seemed like only a subset of actual audience present there. There were babies, kids, men, women and older people all over the place- on stairs, in shops, on roofs, on steps, even around the stage (so much so, they were repeatedly requested to let others also see the performances) and every possible place. As if everyone wanted to witness the change that was happening in the community.

A student of class 4th gave a speech in English; clearly none of them understood even a word but the clap was way louder. For them, kid from their community was doing something not thought of some years back.Students of different classes were dancing confidently in fancy clothes and jewellery (much impressed with self-designed jewellery) left them joyful. At that moment, I felt this is a true celebration of Independence Day. For they have seen the change, from the time when no kid used to go to school to a time when many-many of the kids are dressed in school uniform every morning.

Though it’s a slow process, education gives you a strong platform to enjoy each day as a true
Independence Day !!

By : Shikha Mahajan
Volunteer-AID-Noida


12.30.2012

छू लूं आसमां ....


                                                                    जनवरी 2008 :(प्रयास नोएडा सेण्टर ) 

~ सरजी मैं बताऊ  ?
~ सोना तू रुक जा अभी बेटा ,सूबी ,सज्जाद ,जुलेखा ,साबरीन तुम सब बताओ
~ सर Q  फॉर क्वीन ... क्वीन मतलब रानी ..
सूबी ने जवाब दिया ...
~ सूबी  के अलावा किसी को नहीं पता क्या  ?? हद है एक ही बात  मैं कितनी बार पढ़ाऊंगा तुम सबको ??
~ सरजी अब तो मुझे बताने दो ना .. सोना बोली ..
सोना की नन्ही आँखों की चमक बता रही थी की उसे पता है ..
~ अच्छा बता सोना ? 
~ सर , Q फॉर क्वीन ,क्वीन मतलब रानी ,Q फॉर क्वील्ट ,क्वील्ट  मतलब रजाई .. और हाँ सरजी Q फॉर क्वेर्रल .. क्वेर्रल मतलब झगडना ....
~    कहाँ पढ़ा ये सब ???
~ सरजी आपने जो पाकिट डिक्शनरी दी थी .. उसी से पढ़ा ...

बता दूं की सोना नोयडा की झुग्गी के उन पांच बच्चों में से एक थी जिनको जनवरी से मार्च 2008 के उन तीन महीनों में  जीरो से क्लास 3 या अथवा क्लास 4 तक के लिऎ तैयार करने की जिम्मेवारी ली थी हमने .. ( विस्तार से पढने के लिए पढे "पितृत्व – एक यात्रा" ) ये बच्चे या तो  कूड़ा बीनते थे या कभी स्कूल नहीं  गए पहले ...कुछ गए भी तो सरकारी स्कूल में पत्थर चुनने में लगा दियी जाते थे ... 

मई  2011 : (प्रयास नोएडा सेण्टर ) 

~ सरजी ,आप बोलते थे ना की केवल अच्छे स्कूल में एडमिशन होने से कुछ नहीं होता ,जब तक की पांचवी पास न हो जाए सब बेकार है ...
~ हाँ तो ...
~ सरजी देखो अब मैंने पांचवी भी पास कर लिया और मेरा ओम फाउंडेशन में एडमिशन भी हो गया ..अब देखना मैं आपका नाम जरुर ऊँचा करूंगी ..
मन ही मन मैं खुश था ये सुनकर मगर एक अच्छे कोच की तरह अपने शिष्य को हमेशा धरातल पे रखने के एवज से बोला ..
~ देख सोना .. अच्छी बात है की तूझे एडमिशन मिल गया है .. पर असली पढाई तो अब है .. जब तक क्लास दसवी नहीं पास करती तब तक सब बेकार है ...
~ सरजी ..ये गलत बात है ..आप हर बार बढाते जाते हो ..दसवी पास जब हो जाउंगी तो बोलोगे ये बेकार है जब तक की बारहवी नहीं होती ... थोड़े उदासी व थोड़े गुस्से में बोली वो ..
~ बेटा ,जिन्दगी में हमारे लक्ष्य स्थिर नहीं होते ,समय के साथ वो भी बदलते हैं ...
कुछ ख़ास समझ नहीं आया उसे ,फिर भी वो शांत होकर बैठ गयी अपनी जगह पे ..

अगस्त 2012 :( बेगू सराय जिला बिहार )

~ क्या उम्र है तेरी ?
~ 14 साल ,पुलिस इन्स्पेक्टर की आँखों में आँखे डाल के बोली वो ..
झूठ बोलती है ये .. अठठारह बरस की है ये .. उसकी माँ बेगुसराय थाने के उस इन्स्पेक्टर को बोलने लगी ..
~ सर मम्मी झूठ बोलती है ताकि मेरी शादी रहमान भाईजान से करवां सके ...
~ चुप कर तू  ,चार अक्षर क्या पढ लिए चली बकवास करने ... 
~मोह्फीज ... तेरा ट्रेक रिकार्ड सब है मेरे थाने में .. कितने मर्डर के केस है तेरे खिलाफ सब जानता हूँ मैं ,इंस्पेक्टर बोला ...
~ साब लौण्डिया झूठ बोलती है .. मेरी भांजी है मुझे पता है अठठारह बरस की है य
~ लडकी को देख के पता चल रहा है की पंद्रह से ऊपर नहीं है ..और तुमने इसकी जबरदस्ती शादी करने की कोशिश की तो मैं "मोह्फीज  तुझे और तेरी   बहिन यानि इसकी  माँ दोनों को अन्दर  करूँगा लम्बे के लिए " ...
बताऊँ कि   हमारी एक  साहसी सहयोगी  की  गहरी कोशिश के तहत ( बेगू सराय के एसडीएम् , थानेदार से लेकर   डीएम तक फोन खड्कानॆ के बाद ही पुलिस पहुँची  थी सोना के गाँव ) ..

सितम्बर 2012 : ( इन्फोसिस चंडीगड़ )

~ हैलो , जी मैं दर्शन बोल रहा हूँ ,सोना से बात करवा दीजिये ..
~ अरे सर मैं सोना का मामा "मोह्फीज " बोल रहा हूँ ..आपका नाम सूना है ..
~ देखिये हम लोग पिछले 5-6 साल से बच्चों पर इसलिए मेहनत कर रहे थे ताकि एक दिन ये बच्चे अपने पैरों पर खडे हो सकें ..
~ सर आप फिकर न करिए ..हम सोना को यहीं बिहार में पढ़ाएंगे ... लीजिये सोना से बात करिए ..
~ कैसी है बेटा ... ?
~ सर मैं ठीक हूँ ,आप कैसे हैं ,सब लोग कैसे हैं प्रयास में ? 
~ सब ठीक हैं बेटा , कब आयेगी नोएडा ? 
~ सर मामा यहीं पढने का इतंजाम कर देंगे .... 

अक्टूबर 2012 : (प्रयास नोएडा सेण्टर ) 

~ तू तो फोन पर कह रही थी की तू वहीं पढेगी ?
~ सरजी मेरी गर्दन पर चक्कू रख दिया था ,तो मैं क्या कहती ?
~ तो तुझे मारा भी ??
~ सरजी मुझे खूब मारते थे ..मेरी पसलियाँ ऐसे आवाज करती हैं जैसे टूट गयीं हों .. बहुत दर्द रहता है सर .. और वो रोने लगी ...
~ फिर वापस कैसे आ गयी तू ?
~ पापा और मम्मी की लड़ाई हो गयी एक दिन और पापा मुझे और छोटी भाई को लेकर आ गए ...
~ पढेगी आगे या नहीं ??
~~ क्यों नहीं पढूंगी सर ..जरूर पढूंगी ..मगर स्कूल वाले दुबारा लेंगे मुझे या नहीं पता नहीं ..
~ हम करते हैं बात स्कूल में ...

नवम्बर 2012 : ( स्कूल )

 सोना के पापा को उसके भाई के स्कूल वालों ने दूबारा एडमिशन के लिए मना कर दिया था .. बोला की आप चार महीने बाद फिर गाँव चले जाओगे ..और फिर उसके चार महीने बाद लौटोगे ..हम कितनी बार एडमिशन करेंगे ...
उसके पापा भी केवल इसलिए स्कूल में बात करने गए क्योंकी हम उनको बार-2 समझा रहे थे ,हर किस्म की मदद कर रहे थे ... स्कूल वालों के बर्ताव से परेशान होकर उसके पापा ने ये शर्त रख दी की "सोना भी तब ही स्कूल जायेगी जब उसका भाई स्कूल जाएगा " ...
अगले दिन ...स्कूल प्रिंसिपल के आफिस में 

~ मैडम में आई  कम इन ??
~ यस कम इन प्लीज ...
~ मैडम मुझे अपने भाई के एडमिशन के लिये बात करनी है ..
~ बेटा आपके पापा को कल बता तो दिया था की "एडमिशन नहीं हो सकता "
~ मैडम ,एक बार मेरी बात सुन  लीजिये प्लीज ..
~ अच्छा बोलो ...
~ मैडम ,पापा  मुझे भी स्कूल नहीं जाने देंगे अगर भाई स्कूल नहीं गया तो .. 
~ बेटा तुम तो अच्छी स्टूडेंट थी मगर तुम्हारे भाई के लक्षण अच्छे नहीं हैं ..
~ मैडम लेकिन अगर आपने मेरे भाई को एडमिशन नहीं दिया तो ,पापा मुझे भी स्कूल नहीं जाने देंगे और मेरा "कैरियर " ख़त्म हो जाएगा ..मम्मी एक-दो साल मेरी शादी कर देगी ... मैडम प्लीज मेरी मदद कीजिये ना ,प्लीज ..
~ ठीक है अच्छा ,तुम्हारे भविष्य को संवारने की कोशिश के तहत तुम्हारे भाई को आख़िरी मौक़ा दे देते हैं ...
~ थैंक यूं सो मच मैडम ... 

ये वही स्कूल है जहां मार्च 2008 में सोना चार अन्य बच्चों के साथ अपने एडमिशन के लिए टेस्ट देने गयी थी ..हाल इतने खराब थे की सब लोगों की  रोनी हालत थी ... बहुत जिद के बाद स्कूल ने सोना और सूबी को क्लास थर्ड और बाकी तीन बच्चों को क्लास सेकंड में ले लिया .. और चार साल बाद आज सोना सेवेंथ क्लास में फिर से स्कूल जाने लगी है,इतना कुछ सहने के बावजूद उसके हौंसले बुलंद हैं ..और जिस लिहाज से उसने  प्रिसिपल मैडम को अपनी बात रखी वो सच में "परिवर्तन की बयार है , शिक्षा की बयार है ,और छोटी सी सोना के  बुलंद हौंसलों की बयार है "...
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PS: अगर आप सोना जैसी अन्य बच्चों की मदद करना चाहें तो  
mail us :- info@aidnoida.org     ...